मत कहो अलविदा बहारोंको..
बिन बुलाए जो चली आई थीं
बिन बताए निकल भी जाएंगी
आगे पहचानना भी मुश्किल हो
शायद इतनीं बदल भी जाएंगी
रोक रखना इन्हें मुम्किन ना सही
यह जरूरी नहीं विदाई हो
मत कहो अलविदा बहारोंको..
शाखसे टूटकर जो पात गिरे
एक उम्मीद जोड देंगे वहीं
फूल मुरझाते हैं, मुरझाने दो
ख्वाब तो वक़्तके मोहताज नहीं
यादमें आजभी जो ज़िंदा हैं
उन पलोंकी कहीं तौहीन ना हो
मत कहो अलविदा बहारोंको..
4 comments:
surekh
>>ख्वाब तो वक़्तके मोहताज नहीं..
chhan:-)
छान शब्द आहेत!
आणि हो, हितगुज दिवाळी-अंकावर तुमचं सावरिया ऐकलं. तुफ़ान जमून आलंय. आवडलं. :)
aay haay! khvaaba to vakta ke mohataaja nahee....
sundar!
-- daad
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