Saturday, March 3, 2007

है कहाँ आजकल वो कैसा है?
याद मुझकोभी करता है के नहीं?

एक अर्सा हुआ है खुदसे मिले..

5 comments:

HAREKRISHNAJI said...

हम उन्हे भुल गये ऎसा भी नहि
और वो हमे याद आते भी नहि

आशुतोष said...

पहले पहले तेरी याद आती तो थी
अब किसी याद की याद आती नही

HAREKRISHNAJI said...

Muddate gujari teri yaad bhi aai na hame |
Aur hum bhul haye ho tuze, aaisa bhi nahi ||

Anonymous said...

स्वाती,
तुम्हारी हिन्दी कविता कृति ने निदा फ़ाज़ली की लिखी कविता ' मै ख़ुदा बनके' की याद दिलायी है जो अपनी तीसरी और चौथी पंक्तियों में यह कहती है :
रोज़ मै चाँद बन के आता हूँ
दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ..

और हाँ, फूल की तस्वीर भी ब्लाग जितनी ही सुन्दर है । बँधाई

जयश्री said...

स्वाती.....क्या लिखती हो यार.....!
कितीवेळा व्हायचं फ़िदा....!
आप लिखते रहो.....हम फ़िदा होते रहेंगे :)